मिल्कीपुर (अयोध्या) विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में राजनीतिक उठा-पटक तेजी से सामने आ रही है। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों के भीतर अंदरूनी कलह ने चुनावी समीकरणों को नई दिशा दी है। जहां सपा के सूरज चौधरी आजाद समाज पार्टी से टिकट लेकर मैदान में उतर गए हैं, वहीं भाजपा में भी गुटबाजी के संकेत स्पष्ट हो रहे हैं।
सपा में टिकट को लेकर विवाद
सपा में टिकट वितरण के बाद असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई। सूरज चौधरी, जो सपा से टिकट के प्रबल दावेदार थे, ने आजाद समाज पार्टी का दामन थाम लिया है। उनकी यह चाल न केवल सपा के लिए चुनौती है, बल्कि विपक्ष के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।
भाजपा में नेतृत्व को लेकर असहमति
भाजपा में भी अंदरूनी कलह उजागर हुई। प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही के बुलावे के बावजूद पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा और रामू प्रियदर्शी नामांकन में उपस्थित नहीं हुए। इसके अलावा, जिला महामंत्री राधेश्याम त्यागी ने भी दूरी बनाए रखी। इन घटनाओं से भाजपा के भीतर असंतोष की स्थिति सामने आई है।
चुनावी समीकरणों में बदलाव
दोनों प्रमुख दलों में अंदरूनी विवाद से मिल्कीपुर के उपचुनाव का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। सपा के कुछ पुराने समर्थक अब आजाद समाज पार्टी की ओर झुक रहे हैं, जबकि भाजपा के कार्यकर्ताओं में नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है।
आजाद समाज पार्टी की एंट्री
आजाद समाज पार्टी की राजनीति में एंट्री ने इस उपचुनाव को अधिक दिलचस्प बना दिया है। सूरज चौधरी जैसे नेता का समर्थन प्राप्त करना इस पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। उनका जनाधार और युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रियता इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
स्थानीय मुद्दे और मतदाताओं की प्राथमिकता
मिल्कीपुर के मतदाता इस बार स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते नजर आ रहे हैं। क्षेत्र में विकास कार्यों की धीमी गति, बेरोजगारी, और शिक्षा के अभाव जैसे विषय प्रमुख हैं। ऐसे में उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि और वादों का भी चुनावी परिणाम पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
मिल्कीपुर उपचुनाव में सपा और भाजपा के भीतर की कलह ने चुनाव को रोचक बना दिया है। आजाद समाज पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता और स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित राजनीति ने समीकरणों को और जटिल कर दिया है। आने वाले दिनों में इन घटनाओं का चुनावी नतीजों पर क्या असर होगा, यह देखना दिलचस्प हो