सुप्रीम कोर्ट का खंडित फैसला: छत्तीसगढ़ में धर्मांतरित ईसाई के दफनाने के स्थान पर विवाद

नेशनल न्यूज़ डायरी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

छत्तीसगढ़ में धर्मांतरित ईसाई के अंतिम संस्कार के स्थान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को खंडित फैसला सुनाया। यह मामला एक धर्मांतरित ईसाई के शव को लेकर था, जिसे 7 जनवरी से शवगृह में रखा गया है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की पीठ ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राय दी।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की राय

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि धर्मांतरित ईसाई का अंतिम संस्कार परिवार की निजी कृषि भूमि पर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि परिवार को निजी भूमि पर शव को दफनाने की अनुमति दी जाती है, तो यह उनके व्यक्तिगत और धार्मिक अधिकारों का सम्मान होगा। उन्होंने जोर दिया कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीने और मरने के अधिकार” से भी जुड़ा हुआ है।

न्यायमूर्ति एससी शर्मा का दृष्टिकोण

दूसरी ओर, न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने कहा कि धर्मांतरित ईसाई का अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ में निर्धारित स्थान पर ही किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने विचार में कहा कि धार्मिक और सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि शव को एक सार्वजनिक और निर्धारित स्थान पर दफनाया जाए।

विवाद की पृष्ठभूमि

यह मामला छत्तीसगढ़ के एक गांव का है, जहां एक धर्मांतरित ईसाई का निधन हो गया था। परिवार ने शव को अपनी निजी भूमि पर दफनाने की इच्छा जताई थी, लेकिन स्थानीय समुदाय के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। इस विरोध के बाद मामला अदालत तक पहुंचा।

शवगृह में शव रखने की समस्या

मामले की सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि शव को 7 जनवरी से शवगृह में रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह स्थिति अस्वीकार्य है और इस मामले का त्वरित समाधान जरूरी है।

सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण

यह मामला केवल कानूनी नहीं है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। धर्मांतरित ईसाई समुदाय के अधिकारों और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि सभी संबंधित पक्षों के हितों की रक्षा की जाए।

निहितार्थ और आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट का यह खंडित फैसला सामाजिक और कानूनी विवादों के समाधान के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है। हालांकि, इस मामले में अंतिम निर्णय अभी भी स्पष्ट नहीं है। अब राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर यह जिम्मेदारी है कि वे इस विवाद को सुलझाने के लिए उचित कदम उठाएं

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