कोरोना के नाम पर आशाओं से धोखा।

उत्तराखण्ड देश

जिस प्रकार से कोरोना काल में डॉक्टर,नर्स और मेडिकल वर्कर को सरकार ने फ्रंट लाइन वर्करस का दर्जा दिया लेकिन सरकार ये भूल गई कि गावो में ये फ्रंट लाइन वर्कर का काम एक आशा कर रही है। जब कोरोना काल में लोग घरों से बाहर नही निकल रहे तब इन आशाओं ने अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभाया लेकिन सरकार ने इनके साथ  धोखा किया। कोरोना काल में किये गए कार्यों के लिए न तो इनका सम्मान किया न तो सम्मानजनक प्रोत्साहन राशि दी गई। कम मानदेय होने के कारण इनको अपने परिवार के  पालन पोषण में बहुत दिक्कतो सामना करना पड़ रहा है लेकिन सरकार इनकी सुध नही ले रही है।

मुख्यमंत्री जी द्वारा आशा फैसिलिटेटरों को कोविड महामारी के दौरान  कार्य करने पर (1000) एक हजार रुपये देने की घोषणा की थी जो आज भी सिर्फ एक घोषणा तक ही सीमित रह गई है। आजतक सरकार ने पिछली बकाया राशि आशाओं को नही दी जिससे ये लोग अपने हक की लड़ाई के लिए सड़को पर उतरने के लिए तैयार है।

ये आशाएं 30 दिन काम करती है और 20 दिन का पैसा ही मिलता वो भी 300 रूपये एक आशा की प्रति विजिट पर और महिने में 20 विजिट करते है ना कोई मानदेय ना कोई भ्रमण दे ना कोई प्रोत्साहन राशि ।
 
एक विजिट पर 300 रुपए दिया जाता जो कि इस महगाई दौर में बहुत कम है गाड़ी का किराया भी इसी में शामिल है। कभी- कभी इनकी ड्यूटी राष्ट्रीय कार्यक्रमों में लगा दी जाती इसका भी इनको पूरा पैसा नही दिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *