मंडी, 25 फरवरी 2025 – भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। दो साल के शोध के बाद उन्होंने एक अनूठी कृत्रिम त्वचा (डिजिटल स्किन) विकसित की है, जो न केवल तापमान और दबाव को महसूस कर सकती है बल्कि सतह की बनावट को भी समझने में सक्षम है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी होगी जिन्होंने दुर्घटनाओं में अपने अंग खो दिए हैं। इस तकनीक की मदद से रोबोटिक अंगों को और अधिक संवेदनशील बनाया जा सकेगा।
डिजिटल स्किन की कार्यक्षमता
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर श्रीकांत और उनकी 12 सदस्यीय टीम ने इस डिजिटल स्किन को विकसित किया है। इस कृत्रिम त्वचा के माध्यम से रोबोटिक अंग गर्मी, ठंडक, दबाव और सतह की विशेषताओं को महसूस कर सकते हैं। इससे रोबोटिक हाथों को वास्तविक हाथों की तरह अधिक संवेदनशील बनाया जा सकेगा।
कैसे काम करेगी यह कृत्रिम त्वचा?
रोबोटिक प्रणाली आमतौर पर किसी वस्तु के तापमान और बनावट को पहचानने में सक्षम नहीं होती, लेकिन आईआईटी मंडी द्वारा विकसित यह डिजिटल स्किन इस समस्या का समाधान प्रदान करेगी। यह त्वचा न केवल यह बता सकेगी कि कोई सतह गर्म है या ठंडी, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकेगी कि किस वस्तु को कितने दबाव से पकड़ना चाहिए।
चार से पांच साल तक चलेगी यह स्किन
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह कृत्रिम त्वचा चार से पांच वर्षों तक प्रभावी रूप से कार्य करेगी। हालांकि, इसे अत्यधिक गर्मी और ठंड के प्रति और अधिक परीक्षण की आवश्यकता होगी, जिसके लिए अगले एक वर्ष तक अनुसंधान जारी रहेगा। इस डिजिटल स्किन के निर्माण में पॉलीडाइमिथाइलसिलोक्सेन (PDMS) का उपयोग किया गया है, जो एक विशेष रबर जैसी सामग्री है और इसके अंदर हाइड्रो जेल भरा गया है, जिससे यह त्वचा अधिक लचीली और संवेदनशील बनती है।
आईआईटी मंडी में हुआ संपूर्ण अनुसंधान
सहायक प्रोफेसर श्रीकांत ने बताया कि इस डिजिटल स्किन से संबंधित सभी अनुसंधान और विकास कार्य आईआईटी मंडी में ही किए गए हैं। वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की टीम इस कृत्रिम त्वचा को और अधिक परिष्कृत बनाने के लिए कार्य कर रही है।
हेल्पिंग रोबोट: स्वास्थ्य सेवाओं में नई क्रांति
आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने डिजिटल स्किन के अतिरिक्त एक हेल्पिंग रोबोट भी विकसित किया है, जो अस्पतालों में नर्सों की सहायता करेगा। यह रोबोट विभिन्न आदेशों को पहचानकर कार्य कर सकता है। इसमें वॉयस कमांड, बटन कमांड और अन्य तकनीकों को शामिल किया गया है। यह रोबोट दवाइयों का प्रबंधन, सफाई कार्य, इंजेक्शन रखने और अन्य आवश्यक कार्यों में सहायता करेगा।
भविष्य की संभावनाएँ
डिजिटल स्किन और हेल्पिंग रोबोट का विकास चिकित्सा एवं रोबोटिक्स के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। यदि यह तकनीक सफल रहती है, तो कृत्रिम अंगों को अधिक संवेदनशील और कार्यक्षम बनाया जा सकेगा, जिससे दिव्यांगजनों को एक नया जीवन मिल सकता है।
आईआईटी मंडी के इस महत्वपूर्ण शोध ने भारत को रोबोटिक्स और कृत्रिम अंगों की संवेदनशीलता के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की दिशा में एक नया आयाम दिया है।