कन्वर्जिंग पाथ्स: पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सामंजस्य

देश शिक्षा

देहरादून । डॉल्फिन (पीजी) इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल एंड नेचुरल साइंसेज में गुरुवार को “कन्वर्जिंग पाथ्स: ब्रिजिंग ट्रेडिशनल प्रैक्टिसेज एंड मॉडर्न साइंस” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ किया गया। इस आयोजन में उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) ने सहयोग प्रदान किया, जिसका मुख्य उद्देश्य पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। सम्मेलन में 10 राज्यों से आए 150 से अधिक शिक्षकों, शोधकर्ताओं और छात्रों ने हिस्सा लिया।

दीप प्रज्वलन से हुआ उद्घाटन

कार्यक्रम का शुभारंभ यूसर्क की निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) अनीता रावत ने दीप जलाकर किया। अपने उद्घाटन संबोधन में उन्होंने पारंपरिक प्रथाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “हमारे समाज में पारंपरिक ज्ञान की जड़ें गहरी हैं, और हमें इसे न केवल संरक्षित करना चाहिए बल्कि इसे आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ भी जोड़ना चाहिए।” उन्होंने सभी से स्थिरता के लिए कार्य करने और अपनी जड़ों से जुड़े रहने का आह्वान किया।

युवाओं की क्षमता पर बल

डॉ. रावत ने युवाओं के लिए प्रेरणादायक बातें कही। उन्होंने कहा, “युवा समाज में परिवर्तन लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनके पास नवीन विचार हैं, जिन्हें अगर सही दिशा दी जाए, तो सकारात्मक बदलाव संभव है।” उन्होंने यूएसईआरसी के 150 से अधिक “विज्ञान चेतना केंद्रों” की चर्चा करते हुए बताया कि यह केंद्र वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

पारंपरिक ज्ञान की वैज्ञानिक प्रासंगिकता

सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ. डीके असवाल ने पारंपरिक प्रथाओं के वैज्ञानिक महत्व पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “हमारी पारंपरिक प्रथाओं में वैज्ञानिकता छिपी हुई है, और अगर हम उन्हें आधुनिक जीवन में लागू करें, तो समाज में व्यापक सुधार ला सकते हैं।”

प्रथम तकनीकी सत्र: स्वास्थ्य सेवा में नवाचार

सम्मेलन के दौरान दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र में स्वास्थ्य सेवा में पारंपरिक और आधुनिक नवाचारों पर चर्चा की गई। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) के वैज्ञानिक डॉ. देबाशीष घोष ने बताया कि पारंपरिक उपचार पद्धतियों का स्वास्थ्य क्षेत्र में किस प्रकार प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।

दूसरा तकनीकी सत्र: संधारणीय कृषि और पर्यावरण संरक्षण

दूसरे सत्र में, संधारणीय कृषि और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया। पर्यावरणविद् डॉ. सौम्या प्रसाद ने बताया कि कृषि में संधारणीय प्रथाओं को अपनाना पर्यावरण संरक्षण के लिए कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि यह न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मददगार हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद साबित होंगे।

प्रमुख विद्वानों की उपस्थिति

इस सम्मेलन में डॉ. शैलजा पंत, डॉ. वर्षा पर्चा, डॉ. श्रुति शर्मा, डॉ. दीपक कुमार, डॉ. प्रभात सती, और अन्य प्रमुख शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं की उपस्थिति रही। पोस्टर सत्र के माध्यम से प्रतिभागियों ने अपने शोध कार्यों को साझा किया, जिससे ज्ञान के आदान-प्रदान का अवसर मिला।

समापन विचार

इस सम्मेलन ने पारंपरिक प्रथाओं और आधुनिक विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया। यह आयोजन न केवल वैज्ञानिक विचारों के आदान-प्रदान के लिए सहायक साबित हुआ, बल्कि युवा शोधकर्ताओं को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा भी दी।

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